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जीवन में विनोदवृत्ति का महत्व
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जीवन जीने की उत्कृट आकांक्षा और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये मन में उमंग उत्साह रूपी इन्द्रधनुष अपने विविध रंगो से पूरे परिवेश और मन-प्राण को सराबोर कर जाता है। उगते सूजर की पहली किरणें व्यक्ति के विश्वास और आशा को दृढ़ बनाती है और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत उल्लासित मन आने वाले हर कार्य को मंगलमय कर देता है।
जीने को तो हम सभी जीते हैं पर सही मायनों में जीवन जीने की सार्थकता इसी में है, जब हम उसे स्वस्थ, सुखी व आनन्दमय होकर जियें। वैसे तो जीवन पर हमारे खान-पान और विचारों का पूर्ण रूपेण प्रभाव रहता है, लेकिन विनोदवृत्ति एक ऐसा गुण है, जिससे हमारे जीवन में प्रेम, धैर्य, प्रसन्नता मन की शांति सदा विद्यमान रहती है। मन की एकाग्रता विकसित होती है और हम तन-मन से स्वस्थ होते हैं। तात्पर्य यह है कि जब एक व्यक्ति मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है,सापेक्ष विचारों का धनी होता है तभी उसका अपने परिवार, आस-पास व समाज में प्रभावकारी असर होता है। एक निश्चित और हँसमुख स्वाभाव का व्यक्तित्व ही भविष्य के प्रति आशावादी व सकारात्मक दृष्टिकोण रख सकता है। फलतः अपने समस्त रिश्तेनातों व सामाजिक सम्बन्धों को अपने मधुर व्यवहार से सुवासित करता है।
प्रायः एक कहावत कही जाती है, ‘संतोषी सदा सुखी’ अर्थात् सुख, आनन्द, प्रसन्नता एक सुन्दर, कोमल और पवित्र देवदूत है, जो कि पवित्र व निरछल हृदय के व्यक्ति में ही वास कर सकता है और वही, सबके समक्ष सहृदयता के पुष्प, निर्स्वाथता व निष्पक्षता माध्यम से सुरभित करता है। ऐसा व्यक्तित्व अपने लिये ही नहीं बल्कि अपने मित्रों, सहयोगियों व विरोधियों के मार्ग में भी काँटों की जगह फूल बिछाता हैं, परिणामतः जीवन स्वतः ही आनन्द-कानन की भाँति महक उठता है। इसके साथ ही, विनम्रता और विनयशीलता भी मानव को सहज व सरल बनाती है। जो व्यक्ति अपने जीवन को आडम्बरों से रहित करके हर्षित मन से जीवन की समस्त कठिनाईयों व त्रुटियों को, उनके उचित-अनुचित परिणामों को, बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेता है, तो, ऐसा करते हुये ना तो उसके चेहरे पर असंतोष या भव की रेखायें उभरती है और ना ही किसी से कोई अपेक्षाएँ होती है। इस प्रकार वह विनयशील रहकर सबका प्रिय बनता है और सबके मध्य अपने अनुकूल आचरण से आलौकिक आनन्द व सफल सुख प्राप्त कर सकता है।
वस्तुतः प्रसन्नचित्त रहने वाला व्यक्ति निरन्तर उर्जा, उत्साह व आत्मिक शक्ति अर्जित करता रहता है। जिसके फलस्वरूप वह सर्वजन प्रेमभाव से मानवधर्म का साम्राज्य प्रसारित करता है। जिससे सर्वत्र सुख प्रसारण से दुःख-दारिद्रय का उन्मूलन होता है एवं मार्धुय व प्रेमभाव की अभिव्यक्ति होती है। जिससे परिवार, समाज व राष्ट्र में विरोध नष्ट होकरएक विचार, एक मन, एक सभा, एक समिति और सर्वहित चिन्तन ही होता है। साथ ही, परस्पर सह अस्तित्व एवं आत्मीयता के भाव जाग्रत होते हैं। इसलिये सदा खुश रहने वाला व्यक्ति, व्यक्तिगत, सार्वजनिक तथा राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित ही लोकप्रिय होता है।
वर्तमान में, सामाजिक व जनकल्याण के कार्यों हेतु सहृदयी, उत्साही, सहज, सरल व सापेक्ष विचारधारा वाला व्यक्ति ही समाज व राष्ट्र के निर्माण व उत्थान में संघर्षरत रह सकता है। अतः जीवन में, आने वाली हर परिस्थितियों में प्रसन्नचित्त रहकर, मानवता और आपसी प्रेम के बल पर, महान विभूतियों के विचारों से प्रेरणा लेकर, उनके पद चिन्हों पर चलते हुये, सतत् आगे बढ़ते रहें।
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