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सकारात्मक सोच का जादू
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संसार एक है लेकिन इसमें असंख्य मनुष्य निवास करते है। इस विश्व का प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग नजरिये से सोचता व विचार करता है और सोचने-समझने का तरीका ही, एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से भिन्न करता है। कई बार मानव जीवन में, घटित अनचाही घटनाएँ जैसे-अपमान, नुकसान, असफलता, धोखा, दुर्घटना, पराजय आदि इसे निरपेक्ष सोच रखने के लिये बाध्य कर देती हैं। जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति यह सोचने लगता है कि वह सही व्यक्ति नहीं, उसमें कोई कमी है या वह असफल है, इसलिये कष्ट सह रहा है। फलस्वरूप निराशा, हताशा और मायूसीकी स्थिति में स्वयं को पाता है।
इस तरह व्यक्ति जैसी मूलभूत धारणाएँ व सोच रखता है वैसी ही उसकी जीवन शैली बन जाती है और यह सोच ही उसके जीवन उद्देश्यों का फैसला करती है। अतः निराशा युक्त जीवन से मुक्ति पाने के लिये इन्सान को अपने नकारात्मक विचारों को त्यागकर, सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा, मूलभूत धारणाएँ बदलनी होंगी और यह मनन करना होगा कि उसके साथ जो भी घटित हो रहा है, वह अच्छा ही होगा तभी व्यक्ति स्वंय को सामान्य एवं शान्त रख सकता है और सफलताओं की सीढ़ियाँ चढ़ सकताहै।
सकारात्मक दृष्टिकोण बनाये रखने हेतु, सर्वप्रथम मनुष्य को अपने शरीर के विशिष्ट तन्त्र मस्तिष्क को सृजनात्मक विधियों से श्रेष्ठ बनाना होगा क्योंकि इस तन्त्र से ही हमारी समस्त अनुभूतियों, संवेदनाओं और विचारों का अंकुरण होता है। यही जीवन के अस्तित्व का आधार है। अतः इसी मस्तिष्क को संतुष्ट एवं प्रसन्न रखने का सुयत्न करना है। तभी व्यक्ति की सोच सकारात्मक हो सकती है और इस विशिष्टता से परिपूर्णं, आत्मविश्वास से जगमगाते अपने व्यक्तित्व हेतु विश्व को चकाचौंध करने में समर्थवान हो सकता है।
वस्तुतः मस्तिष्क की अनेक गतियाँ है, अनेक अवस्थाएँ है और अनेक स्थितियाँ है। व्यक्ति की सकारात्मक सोच, मस्तिष्कीय कार्यप्रणाली की इन्हीं अवस्थाओं पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से निर्भर होती है। इसलिये मनुष्य को अपने मन की आवाज़ सुनना अत्यन्त आवश्यक है। मन की विभिन्न अवस्थाओं को ‘मिज़ाज’ नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग भावनाएँ होती है और उनमें परिवर्तन भी होता रहता है, अस्वाभाविक परिवर्तन की स्थिति में चिन्तित होना स्वाभाविक है, परन्तु विपरीत परिस्थितियाँ होने के बावजूद भी उसे धैर्य नहीं छोड़ना चाहिये बल्कि विषमता से उत्पन्न कई हताशा व निराशा की स्थिति से स्वयं को दूर रखकर सत्संग, सुवचन सुनना, श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन करना, संगीत सुनना व प्रिय खेल खेलना चाहिये। जिससे मन पर कोई निषेधात्मक प्रभाव ना रहे। जीवन में सदैव प्रसनन व सुखी रहने के लिये, जीने एवं श्रेष्ठ तकनीक एवं सापेक्ष विचार शक्ति का विनियोग करके मस्तिष्क में उत्तम विचारों को पोषित करना चाहिये।
मूलतः स्वस्थ शरीर ही सक्षम, सशक्त व्यक्तित्व का आधार है और स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मस्तिष्क का विशिष्ट राजमहल है। स्वस्थ म नही सर्वत्र प्रसन्नता की बौछार करने के साथ, आत्मीय स्वजनों, मित्रों व सामाजिक बन्धुओं के मध्य सौहार्द सम्बन्ध स्थापित करने में मदद करता है। अच्छा स्वास्थ्य व सकारात्मक सोच प्रकृति का, मनुष्य के लिये एक अनमोल उपहार है, इससे कभी विमुख नहीं होना चाहिये। हो सकता है, इस यान्त्रिक जीवन में कभी मानसिक व शारीरिक दुविधाओं का दुष्काल सामने आ ही जाये परन्तु फिर भी घवराहट व निराधा की स्थिति में नहीं जाना चाहिये। सदैव स्वँय को सँवारने, निखारने एवं उत्कृष्ट बनाने हेतु हर सम्भव प्रयास करना चाहिये ताकि हम इस संसार में समस्त सुख, आनन्द व सफलता की अनुभूति कर सकें।
अतः मनुष्य के जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक जीवन यापन शैली अपरिहार्य है। यदि जीवन में इस महत्वपूर्णं घट को नजर-अन्दाज कर दिया जाये तो परिणाम शून्य ही होगा। इसलिये सापेक्षित जीवन यापन के प्रमुख अवयव यथा, अपने जीवन का वास्तविक दृश्य, स्वाभिमान, लक्ष्य, मानसिक दृढ़ता, प्रसन्नता एवं शान्त-चित्तता आदि को पहचानकर, उन्हें आन्तरिकता से अपनाना होगा क्योंकि बिना सकारात्मक उद्वेगों का अनुभव करता है। इसलिये सापेक्ष दृष्टिकोण की शक्ति को दृढ़ बनाने हेतु उचित शारीरिक व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान व योग की उचित तकनीक, शरीर और मन के लिये अत्यन्त हिकारी है, जो मस्तिष्क में ऑक्सीजन की अतिरिक्त आपूर्ति कर कार्यकौशल, विचारों और भावनाओं को परिपक्वता व श्रेष्ठता प्रदान करती है। इसके साथ ही, अपने मन को अपना साथी बनाकर, हसे अपने साथ लेकर प्रकृति के सुदूर, मनभावन स्थान की सैर करने से भी स्वँय को सहज व आनन्दित अनुभव करेगे। फलस्वरूप आपकी अभिवृत्ति, आकांक्षा और कार्यशीलता भी उन्नत होगी।
मुख्यतः समस्त मानवीय सफलताएँ मात्र दो तत्वों पर ही अवलम्बित है। ये महत्वपूर्णं तत्व है, ‘सकारात्मक सोच’ व आत्मविश्वास’। इन तत्वों में गुणोत्तर विकास करने से ही सफलताएँ, व्यक्ति के साथ किलोल करने के लिये आतुर हो जाती है। वास्तव में, व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके आत्म विश्वास से ही परिष्कृत व सफल होता है। आवश्यकता है, अपने अर्न्तमन की विशिष्ट क्षमताओं में अटूट विश्वास रखने की। जैसे ही मनुष्य अपने मन पर ‘विश्वास सृजन’ की प्रक्रिया सम्पन्न करता है तो निश्चित ही, जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति पथ पर अग्रसित होते हुये, उसके पास पीछे मुड़कर देखने का समय नहीं होगा और अपने सुयश से परहित कार्यों को करता हुआ सबको अभिभूत कर सकेगा।
निष्कर्षतः सकारात्मक सोच के जादू से अपनी आशा और विश्वास को जीवन की धरोहर बनाईये। इसका अप्रतिम जादुई तत्व मस्तिष्क को श्रेष्ठ दिशा प्रदान करने वाला है। इन्सान का सकारात्मक रूख ही उसके मन को सफलतादायक विचारों से पोषित करता है जबकि इसके विपरीत नकारात्मक जरिया हतोत्साहजनक विचारों को जन्म देता है। इसलिये अपने विश्वास को सदैव सापेक्ष विचारों का ही उपहार प्रदान कीजिये। फलस्वरूप सुलझे हुये विचार, निर्मोही मन एवं प्रेम करने वाले हृदय में क्रोध और अंहकार के लिये कोई स्थान नहीं होगा। सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय का कोई प्रतिकूल व अनुकूल प्रभाव नहीं होगा, सब चर-अचर प्राणियों से, मोह-माया विलुप्त हो जायेगी। ऐसे मन-मस्तिष्क का मानव ही सकारात्मक विचारों का स्वामी बनकर देश व समाज में, अपने सुकर्मो व प्रतिभा से धन, ऐश्वर्य एवं समृद्धि का वरण करता है साथ ही अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिये हर स्थिति में, उत्साहित व संकल्पित रहता है।
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