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हास्य मानव जीवन के लिए वरदान है
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जीवन जीने की उत्कट आकांक्षा और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मन में उमंग उत्साह रूपी इन्द्रधनुष अपने विविध रंगो से पूरे परिवेश और मन-प्राण को सराबोर कर जाता है। उगते सूरज की कोमल किरणें व्यक्ति के विश्वास और आशा को दृढ़ बनाती है और आत्म-विश्वास व सरसता से ओत-प्रोत उल्लसित मन आने वाले हर पल को मंगलमय कर देती है फलतः मनुष्य के मुख मंडल पर आनन्दमय मुस्कुराहटें सदा बनी रहती है।
जीने को तो हम सभी जीते हैं पर सही मायनों में जीवन जीने की सार्थकता इसी में हैं, जब हम उसे स्वस्थ, निरोग, आनन्दमय तथा हँसी-खुशी के साथ जियें। वैसे तो जीवन पर हमारे खान-पान विचारों और नियमित जिन्दगी व संयमित दिनचर्या का पूर्णरूपेण प्रभाव रहता है परन्तु हॅुंसमुख व विनोदवृत्ति एक ऐसा गुण है जिससे हमारे जीवन में प्रेम, धैर्य, प्रसन्नता, शान्ति व मन की खुशी सदैव विद्यमान रहती है। मन की एकाग्रता विकसित होती है और मस्तिष्क सकारात्मक, सात्विक व सहज होता है तात्पर्य यह है कि जीवन के सफर का ‘आनन्द-स्पंदन’ तभी अनुभव किया जा सकता है जब मानव हॅंसमुख स्वभाव का स्वामी हो। फलस्वरूप तभी उसका स्वयं परिवार समाज आदि सम्बन्ध में प्रभावकारी असर होता है इसलिए निश्चिन्त और विनोदी स्वभाव का धनी व्यक्तित्व ही भविष्य के प्रति आशावादी व सकारात्मक दृष्टिकोण रख सकता है। और सभी को अपने मुधर व्यवहार व मुस्कुराहटों से जीवंतता व हर्षमय वातावरण देते हुए सुरभित करता है।
प्रायः एक कहावत कही जाती है ”संतोषी सदा सुखी-आनन्द का खजाना है खुशी’’ अर्थात् सुख, आनन्द प्राप्त करने के लिए दिन में कई बार स्वछन्द रूप से हॅंसना बहुत आवश्यक है। प्रकृति में परमा-नन्द है, और उसके सानिध्य में प्रसन्नता का अपार स्रोत है जो कि एक सुन्दर, कोमल और पवित्र देवदूत है। अतः आनन्द, हर्ष, खुशी पवित्र व निश्छल हृदय के स्वामी में ही वास कर सकती है और वही मनुष्य सहृदयता के पुष्प, मुस्कुराहटों के मोती व आनन्द की धारा सबके समक्ष निस्वार्थता व निष्पक्षता के माध्यम से प्रवाहित करता है ऐसा व्यक्तित्व अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने मित्रों सहयोगियों व विरोधियों के मार्ग में भी खुशियों के फूल बिछाता है। जीवन स्वतः ही आनन्द-कानन की भॉंति महक उठता है।
इसके साथ ही, विनम्रता और विनयशीलता भी मानव को सहज व सरल बनाती है, और वह आनन्द से सराबोर होकर अपने जीवन को आडम्बरों, चिन्ताओं, भय, क्लेश से रहित करके हर्षित मन से जीवन की समस्त कठिनाईयों व त्रुटियों को उनके उचित, अनुचित परिणामों को, बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेता है। ऐसा करते हुए ना तो उसके चहरे पर असन्तोष की रेखाएॅं उभरती हैं, और ना ही किसी से कोई अपेक्षाऐं होती हैं। इस प्रकार विनयशील, शान्त और आनन्दित रहकर मनुष्य सबका प्रिय बनता है, और सबके मध्य अनुकूल आचरण से आत्मसुख, आलौकिक आनन्द व सफल सुख प्राप्त कर सकता है, कहा भी है।
‘‘इन सांसों का किसे भरोसा, हॅंसलो, मुस्कालो, खुशियों के दीप जलालो,
जिससे जितनी निभे साथियो उतनी प्रीति निभालो......
वस्तुतः स्वस्थ शरीर में प्रफुल्लित मन होता है, और योग, प्राणायाम के माध्यम से ही प्रसन्नता, सफलता एवं समस्त सुखों का अजस्र स्रोत और मानसिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। इन्हें संवारने, निखारने व उत्कृष्ट रूप से विकसित करने हेतु सप्तकीर्ति स्तम्भ निम्नांकित हैं। 1. सकारात्मक दृष्टिकोंण 2. उत्तम पोषण 3. स्वस्थ आदतें, 4. उचित शरीरिक व्यायाम, 5. सन्तुलित वार्तालाप, 6. स्नेहिल सहृदयी सम्बन्ध, 7. योगिक क्रियायें जैसे, ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा, स्वछन्द हास्य व ओंकार का स्मरणादि। इसके साथ ही, मस्तिष्कीय कार्यकुशलता व क्षमताओं तथा स्वास्थ्य में वांछित उत्तमता और उर्जा शक्ति प्रदाय करने के लिए उचित एवं पर्याप्त विश्राम की भी महती आवश्यकता होती है।
अतः सार्थकता यही है कि हास्य मानव मन को प्रसन्न चित्त रखता है और निरन्तर उर्जा, उत्साह व आत्मिक शक्ति अर्जित करने में सहायक सिद्ध होता है। जिसके फलस्वरूप वह सर्वजन प्रेमभाव से मानव धर्म का साम्राज्य प्रसारित करता है। फलतः परिवार, समाज व राष्ट्र में विरोध नष्ट होकर एक विचार, एक मन, एक सभा, एक समिति और सर्वहित चिन्तन ही होता है, और परस्पर सह अस्तित्व एवं आत्मीयता के भव जाग्रत होते हैं। एक कवि ने कहा भी है-
‘‘हो विचार समान सबके चिन्त, मन सब एक हों
ज्ञान देता है बराबर भोग्य पा सब नेक हों,
हों सभी के दिल तथा मन हर्षित सदा
हृदय भरे हो प्रेम से जिससे बढ़े सुख सम्पदा’’
इसलिये सदैव खुश और आनन्दित रहने वाला व्यक्ति व्यक्तिगत सार्वजनिक तथा राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित ही लोकप्रिय होता है।
‘‘उठो! सदा हंसो, मुसकराओ, सकारात्मक रहोः सदा मधुग्राही बनो, खुश रहो और खुशी बांटो’’ ऐसे प्रेरणास्पद वाक्य सदैव ही मानव मन को आनन्दित जीवन के लिए प्रेरित करते हैं। वास्तव में, सामाजिक व जनकल्याण के कार्यों हेतु सहृदयी, उत्साही, सहज, सात्विक, सरल, खुशमिजाज व सापेक्ष विचार धरा वाला व्यक्ति ही समाज व राष्ट्र के निर्माण व उत्थान में उत्साह के साथ संघर्षरत सकता है और जीवन में, आने वाली हर परिस्थितियों में प्रसन्नचित रहकर, मानवता और परस्पर स्नेह के बल पर, सकारात्मक विचारों, सुकर्मों व प्रतिभा से अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हर्षोल्लास से संकल्पित रहता है। इसी सन्दर्भ में कवि की ये पंक्तियाँ भी यही दर्शाती हैं..........
”कभी दुख है, कभी सुख है, ये जीवन धूप छाया है।
हँसी में ही बिता डालो बितानी ही ये माया है।।“
निष्कर्षतः ‘हर्षित मन और स्वस्थ तन’ और अतुलनीय मानसिक क्षमताओं से परिपूर्णं मानव, नित्यप्रतिदिन नव कल्पनाओं के साथ दिव्य ज्ञान का आलोक, कर्म का कौशल, वाणी का माधुर्य और मुस्कुराहटों का सौरभ चहुँ और सुरभित करके, अविरल सर्वत्र प्रिय होता है।
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