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मानसिक दक्षता
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मनुष्य जीवन के समस्त कार्यो का संचालन मुख्यतः मानसिक शक्तियों द्वारा ही होता है। मन विविध क्रियाएँ करता है और अनेक मनोवैज्ञानिक उपायों से उनकी दक्षता में वृद्धि की जा सकती है। ‘शरीर और मन’ मनुष्य के व्यक्तित्व के प्रधान अंगों में से दो है, दोनों ही क्रिया-प्रतिक्रिया करके परस्पर प्रभावित करते है। मन शरीर का राजा है और सभ्यता तथा उन्नति के शिखर पर संसार की वही जातियाँ पाई जाती है, जिन्होंने अपने सदस्यों के मन को बहुत ही परिष्कृत किया है। इसी प्रकार साधारणतः वही लोग अधिक सफल और निपुण होते हैं, जिन्होंने अपने दिमाग को उच्च कोटि की दक्षता प्रदाय की हो। अच्छी तरह प्रवीण और सुशिक्षित म नही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एवं उपयोगिता युक्त सम्पत्ति है। धन भी इसका मुकाबला नहीं कर सकता और इसके बिना निस्सहाय रहता है। विद्यार्थी, साहिसिक, वैज्ञानिक और अध्यापक के लिये तो मानसिक दक्षता का मूल्य स्वतः स्पष्ट है। इसके अतिरिक्त व्यापार, शिल्प, कला और दस्तकारी से सम्बन्ध रखने वाले धंधों में भी शारीरिक परिश्रम के साथ मानसिक दक्षता का महत्व ही बहुत बड़ा है।
मानसिक दक्षता प्राप्त करने के फलस्वरूप व्यक्ति ना केवल विषय-वस्तु को अच्छी तरह से समझ सकता है बल्कि अपने काम को कम समय में निपुणता के साथ सम्पन्न कर सकता है। इसलिये मानसिक दक्षता मूल्यवान उपलब्धि है। इसके माध्यम से बातों को विस्तार पूर्वक समझने, उनको मनन करने, तुलना करने, सटीक विचार दूसरों के समक्ष रखने व अपने क्षेत्र में सुख और सफलता प्राप्त करने की अतुलित क्षमता आती है। भगवान बुद्ध, महाराज विक्रमादित्य तथा परमहंस शंकराचार्य की अमूल्य विचारधारा उनकी मानसिक दक्षता का ही फल था। अतः हर मनुष्य के पास मस्तिष्क के रूप में अमूल्य निधि है आवश्यकता है, उसे अच्छे ढंग से काम में लगाने की, दक्षता प्रदान करने की और कार्यक्षमता में निरन्तर वृद्धि करने व स्वयं को परिष्कृत और सुसंस्कृत करने और परिश्रम एवं कष्ट सहने के लिये कटिवद्ध हों तो व्यक्ति अपनी मानसिक पूँजी के मूल्य को एक अपूर्व सीमा तब बढ़ा सकते है।
दुनिया में, महान तथा सफल व्यक्तियों की जीवनियों में इस बात के अनेक ज्वलन्त दाहरण मिलते है। अमरीका के विख्यात विद्वान एमर्सन का कहना है कि ”दुनिया अपने काम करने वालों के हाथ में अब चिकनी मिट्टी नहीं रही, वरन लोहा बन गयी है और मनुष्य को हथौड़े की कड़ी और लगातार चोटों द्वारा अपने लिये स्थान बना लेना चाहिये।“ एक दूसरे विद्वान स्वेट मार्डन ने लिखा है ‘अपनी सामग्री को, चाहे वह कपड़ा हो, लोहा हो, व चरित्र हो, अधिक से अधिक उपयोगी बना लेना ही सफलता है और साधारण सामग्री को अनमोल बना देना, महान सफलता है। दिमाग केवल पैदा ही नहीं होते वरन् बनाये भी जा सकते हैं मस्तिष्क के भार ही से उसकी उपयोगिता ज्ञात नहीं होती, बल्कि उसकी शक्तियों की व्यवस्था और उद्योगशीलता से उसकी उत्तमता ज्ञात होती है। बहुत से मनुष्य जिन्हें वंशपरम्परा से थोड़ा ही मानसिक बल मिला है, आत्मविश्वास और अध्यवसाय द्वारा दुनिया के महान विचारकों से हो गये।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी, सुख और सफलता दोनों ही के लिये निपुणता के तीन अंग आवश्यक होती हैं।
1.
शुद्धता या यर्थाथता, अर्थात् कार्य सुचारू ढंग से किया जाये।
2.
चाल या काम करने की रफ्तार, निश्चित किया गया कार्य कम से कम समय में सम्पूर्णं होना चाहिये।
3.
उद्योग या परिश्रम की अल्पव्ययता, काम करने में कम से कम थकावट महसूस करना ताकि वह और कार्य बिना थके हुये प्रसन्नचित्त मन से कर सके।
4.
उत्पादकता और मौलिकता, उच्चकोटि की मानसिक-कार्यक्षमता के लिये कार्य करने के साथ-साथ नये विचारों नये संगठनों, नई युक्तियों का उत्पादन भी करते रहना चाहिये। मानसिक दक्षता में इन सभी नियमों का सामंजस्य रहता है और जीवन में सुख, सफलता और समृद्धि प्राप्त करने के लिये यह राजमार्ग है। व्यक्ति और समाज दोनों ही के कल्याण और हेतु सभी को अपना मन की शक्तियों, एकाग्रता, मेघा, तर्कशक्ति, मौजिकता, इन्द्रियों की श्रेष्ठता एवं उत्साह का परिवर्द्धन करना चाहिए इसके साथ ही
अपनी बुद्धि को सुव्यवस्थित ढंग से नियमपूर्वक काम में लावें तथा लगन, दृढ़ संकल्प और सीखने की इच्छा लिये उत्साह-उमंग से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हों तो निसंदेह सफल और उज्जवल भविष्य बन सकेगा।
वस्तुतः प्रत्येक मनुष्य को एक निश्चित ध्येय वस आकांक्षा और सुनुयोजित कार्य प्रणाली की आवश्यकतायें होती है और निरन्तर अग्रसित होते रहने के लिये मन में एक स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित करने व उसको पूरा करने के लिये हृदय में आशापूर्णं विचारऔर मनोभावों से कई मानसिक दक्षता सुदृढ़ होती है। इसके साथ व्यक्ति अपने ऊँचे हौसलों के बल पर उत्साह व आत्मविश्वास से उनकी सिद्धि और सफलता को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। अर्थात् यदि व्यक्ति में दृढ़ आत्मविश्वास, ऊँची योग्यता व शक्ति है तो इससे उसकी मानसिक शक्ति पर बड़ा ही उदार और दिव्य प्रभाव रहता है। मन में एक उत्पादक शक्ति का संचार होता है जो मनोवांछित फल प्राप्त करने में बहुत प्रभावी होती हैं।
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