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सृजनशीलता और हम
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मनुष्य के मन-मस्तिष्क में कल्पनाओं की महिमा निराली है। सृजन और विध्वंस दोनों की क्षमता रखती है, निर्भर करता है कि उनका प्रयोग कैसे करते हैं। संसार में सृष्टि की संरचना और उसका विकास सृजनशीलता का ही परिणाम है। प्रकृति से हमें सदैव कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है। सामान्यतः व्यक्ति में सृजन की शक्ति विचारों, अनुभवों, आन्तरिक ज्ञान व बोध से ही संभव हुई है। प्रभावशाली ज्ञान वउच्चकोटि की सोच ही त्रुटि रहित विचारों को जन्म देती है जिसके फलस्वरूप नये सृजन होते रहते हैं। वैसे वनोविज्ञान में भी ऐसे गुर नहीं, जिससे त्वरित ही सृजन किया जाये पर ऐसी युक्तियाँ अवश्य मिलती हैं, जिनके माध्यम से सोचेन की शक्ति विकसित हो जाती है।
अतएव व्यक्ति को स्वयं सोचने की शक्ति में दक्षता प्राप्त करने के लिये ‘मन’ को यथासाध्य परिपूर्णं तथा विभिन्नता से ओत-प्रोत करना आवश्यक है। जिस क्षेत्र में कार्य करना है उस विषय पर सटीक विचार कर विशेष ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। इससे नये कार्य में सुगमता, चतुरता व मौलिकता आती है। कर्मक्षेत्र चाहे जो भी हो जैसे, अच्छा विचारक, कवि, लेखक, विद्यार्थी, उद्योगपति या वैज्ञानिक बनने के लिये, अनुभव की सम्पत्ति, सम्बन्धित कार्य के विस्तृत क्षेत्र से संग्रहीत करनी चाहिये। सार्थक शब्द ज्ञान और कठिन परिश्रम में सृजन की अतुलित क्षमता होती है। पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ, पर्यटन, मानवीय संवर्ग आदि अनेकों ऐसे साधन है, जिनके माध्यम से मन को विविध प्रकार के ज्ञान और अनुभव से सुसज्जित किया जा सकता है। इसलिये जीवन में सदैव कुछ नया करते रहने हेतु अपने उद्देश्यों के अनुसार ही क्रियाशीलता को संगठित करना चाहिये ताकि हम जो भी कार्य करें उससे समाज राष्ट्र का विकास हो।
जीवन के हर महत्वपूर्णं क्षेत्र में प्रगति करने के लिये दृढ़ इच्छा, कल्पना शक्ति व रचनात्मकता का विकास करना जरूरी है। उदाहरणार्थ, ‘स्कोट व डर्विन, आदि बड़े-बड़े लेखक और वैज्ञानिकों ने कठिन परिश्रम और सार्थक सोच से अपने विषयों में विश्वकोष की जानकारी संचित की थी। तात्पर्य यह है कि सृजनशील में हमारी कल्पनाएँ भी महत्वपूर्णं भूमिका निभाती हैं क्योंकि कल्पना मस्तिष्क की कलाकार है, वह व्यक्ति के भविष्य का चित्र खींचती हैं। यह कलाकार कभी आशावादी होता है और विजय, सुख सफलता एवं आनन्द के चमकदार चित्र खींचता है। इसके विपरीत कभी यह कलाकार मन निराशावादी होता है और भय, खतरे मृत्यु के चित्र बनाता है। इन चित्रों में विचित्र शक्ति निहित रहती है और वे चित्र ही हमें विश्वास और साहस के शिखर पर पहुँचा सकते हैं या निराशा की गहरईयों में ढकेल सकते है वास्तव में, सकारात्मक सोच ही नित नये सृजन का आधार क्योंकि भविष्य के जो चित्र हमारी कल्पना में रहते है, वही आगे चलकर प्रत्यक्ष रूप में प्रकट होते है। इस योग्यता के माध्यम से रचनात्मकता उत्पन्न होती है साथ ही हम सही-गलत का निर्णय कर अपने कार्यों में निपुणता व नवीनता लाते है।
जीवन में सदैव नये विचार और सृजन करने के लिये उत्तम विषय-वस्तु पर एकाग्र मन से ध्यान होना चाहिये। मन की भी शक्ति का प्रयोग करते समय उस पर विश्वास अवश्य करें तथा वह अपने निर्धारित काम को कर सकेगी क्योंकि चिन्तन, मनन कड़े परिश्रम से महत्वपूर्णं सृजन होते है, विचारों में परिपक्वता आती है। फलस्वरूप व्यक्तित्व में अद्भुत निखार आता है। और ज्ञानोपार्जन केवल इस आशय से होना चाहिये जिससे एक पूछतांछ करने वाला, प्रयोगात्मक मन पैदा किया जा सके, जैसे किसी भी संस्कृति की सबसे बड़ी पूँजी है। इसलिये हमें स्वयं ही संकल्पित होना होगा ताकि हम अपने यान्त्रिक, सामाजिक, घरेलू, राजनैतिक अथवा आर्थिक उपार्जन के कार्यों को नये तरीके से सम्पादित करें।
वस्तुतः जीवन में सृजनशीलता हमारे प्रत्येक कार्य को प्रभावित कर उसे नया स्वरूप प्रदान करती है। चाहे वह कितना ही सरल व जटिल कार्य क्यों ना हो? मानसिक प्रवाह के लिये वह वैसे ही पथ-प्रदर्शक का कार्य करती है जैसे- एक दीपक को अपने साथ ले जाता हुआ पथिक, समूचे अन्धकार में प्रकाश फैला देता है। इसी तरह हमें शालीन, सुसंस्कारित परिवार और समाज का निर्माण करने के लिये स्वयं और भावी पीढ़ी को सृजनात्मक जीवन शैली में ढालना होगा। तभी सम्पूर्णं विकसित राष्ट्र की कल्पना साकार हो सकेगी।
अंततः मानवीय संवेदनाओं में सृजन का क्षेत्र विस्तृत व अपरिमित है, यह एकऐसी आवश्यक क्रिया है जो हमारे छोटे से कार्य को भी विशेष रूप प्रदान करती है। नित्य प्रति के कार्यों के तरीके जैसे बाग में फूलों की क्यारियों की बनावट इत्यादि, घर की साज-सज्जा, दफ्तर कारखाने आदि में अनेकानेक कार्य ऐसे हैं जिनमें उपयोगी परिवर्तन करने की आदत डालकर हम अपनी कल्पनाओें को नया रूप प्रदान कर सकते है और जो व्यक्ति सदा छोटे-छोटे काल्पनिक परीक्षण करता रहता है, वही स्वयं में सृजन की विशेष योग्यता पैदा कर लेता है और परिवार, समाज व राष्ट्र के हित में बड़े से बड़े चमत्कारी कार्य करके महान व्यक्तित्व का स्वामी बनता है।
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