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पठन-शौक या अनिवार्यता
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मनुष्य इस पृथ्वी पर अगणित पुण्यों का प्रताप है। यह हमारे सत्कर्मों का प्रताप ही है कि हमें मानुष तन प्राप्त हुआ है। इस धरा पर मानव-जीवन के अवतरण का निश्चित ही विशेष प्रयोजन है, तभी तो ईश्वर ने हमें यह अतुलित, अनुपम, अद्भुत अस्तित्व प्रदान किया है। एैतिहासिक तथ्यों से भी यही ज्ञात होता है कि मनुष्य के इस वर्तमान रूप के प्रार्दुभाव में ही लाखों वर्ष व्यतीत हो गये, तब कहीं जाकर ऐसा सर्वोत्तम सामर्थ्यवान बेजोड़ मानव तन्त्र प्राप्त हुआ। अतः मानव शरीर असंख्य अविश्वसनीय क्षमताओं एवं बुद्धिमत्ता से परिपूर्णं है और इस जीवन को सार्थकता प्रदाय करने के लिये व्यक्ति को स्वाध्याय करना जरूरी है ताकि वह स्वयं को प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी बना सके।
वस्तुतः मनुष्य की सफलता उसके संचित शब्द एवं भाषा ज्ञान पर निर्भर है तथा यह संचित ज्ञान इस बात पर निर्भर है कि ज्ञान प्राप्ति हेतु उसने कितना अध्ययन और उसका निरीक्षण किया है। अतः अध्ययन करना भी एक कला है, उचित रीति से किया गया अध्ययन, पठन व्यक्ति के अन्तरमन की गहराईयों तक पहुँचकर उसकी विद्वता को गम्भीरता प्रदान करता है। एक निपुण पाठक बनने के लिये निम्न गुणों को स्वयं के अन्दर विकसित करना अत्यन्त आवश्यक है।
1.
पठन के प्रति रूचिः- किसी भी विषय से सम्बन्धित उत्कृष्ट पुस्तको को पढ़ने के लिये रूचि, तल्लीनता एवं उत्साह का होना अत्यन्त आवश्यक है। एकाग्र मन से किया गया स्वाध्याय मन को शक्ति व उन्नति प्रदान करता है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति अद्भुत प्रतिभा का धनी होता है।
2.
उद्देश्यात्मक पठनः-
पढ़ने से पूर्व यदि एक निश्चित उद्देश्य निर्धारित कर लिया जाये तो पढ़ाई अनिवार्य ना होकर रूचिकर हो जाती है। यदि किसी भी मनुष्य को जबरदस्ती पढ़ाने का प्रयास किया जाये तो वह कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। अतः लक्ष्य पूर्णं अध्ययन करने से ही, व्यक्ति अपने ज्ञान को संचित कर, अपने विद्धता का परिचय दे सकता है।
3.
दृष्टि स्थरीकरणः-
दृष्टि स्थरीकरण पढ़ने की गति को तीव्रता प्रदान करती है। इस तकनीक के अभ्यास से पठन गति में अत्यधिक विकास होता है और अमूल्य समय का अधिकाधिक उपयोग हो सकता है। विशेषतः पढ़ते समय स्वयं को विषय में केन्द्रित करने मस्तिष्क में श्रेष्ठ क्षमताएँ विकसित होती है। जिसके फलस्वरूप सफलता को नये आयाम मिलते हैं।
4.
दिनचर्या का प्रभावशाली प्रबन्धः-
अध्ययन को प्रभावशाली बनाने हेतु अपनी दिनचर्या का समुचित प्रबन्ध करना अत्यावश्यक है। व्यवस्थित, सुनुयोजित दिनचर्या व्यक्ति को नियमित रूप से पढ़ने, याद करने, पुनरावृत्ति करने, पाठ्यक्रम का पुनः अभ्यास करने के लिये श्रेष्ठ अभि-प्रेरणा प्रदान करती है। अतः योजनाबद्ध तरीके से किया गया अध्ययन, रूचि व लक्ष्यों को पाने में सफलता प्रदान करता है।
5.
उत्तम पठनः-
उत्तम भाषा-ज्ञान प्राप्त करने हेतु श्रेष्ठ चयनित प्रस्तकों का अध्ययन बहुत जरूरी है। पढ़ने के पश्चात् उनकी शिक्षा को अपने मन में आत्मसात कर लेने में ही सार्थकता है। पढ़ने की प्रक्रिया को क्रियाशील बनाने से ही व्यक्ति अपने विचारों में विद्धता प्राप्त कर सकते है।
6.
सकारात्मक अध्ययन अभ्यासः-
अध्ययन करते समय व्यक्ति के नकारात्मक व व्यर्थ के सोच-विचार में ना पड़कर, संयमित मन से सकारात्मक, सफलोन्मुख तथ्यों को ही दृष्टिगत रखना चाहिये। अपने मूड पर नियन्त्रण करके ही व्यक्ति प्रसन्नता, उत्साह व अतिरिक्त ऊर्जा शक्ति प्राप्त कर सकता है परिणामतः पठन क्रिया आपको विचारशील व प्रगतिवादी व्यक्तित्व का स्वामित्व प्रदान करेगी।
सामान्तयाः आज पठन की प्रकृति का स्वरूप विकृत होता जा रहा है। व्यक्ति केवल परीक्षा पास करने के लिये पढ़ता तो है पर ज्ञान ना के बराबर ही होता है क्योंकि पढ़ाई एक बोझ हो गई है। आवश्यकता है, अध्ययन के प्रति हृदय से रूचि, ज्ञान प्राप्त करने की ललक और शिक्षा को जीवन में उतारने की क्षमता जो कि बचपन से ही जाग्रत की जानी चाहिये।
पढ़ने के लिये कभी भी उम्र का कोई बन्धन नहीं होता। जब इन्सान के अर्न्तमन में शिक्षा, ज्ञान प्राप्त करने की ज्योति जाग्रत हो जाये तभी वह मन से पढ़ सकता है। ऐसे अनेकानेक उदाहरण है, अनेक व्यक्तियों को परिस्थिति वश पढ़ने का मौका नहीं मिला और पढ़ने की रूचि जग जाने पर उन्होंने जीवन के अंतिम पड़ाव में अध्ययन करके स्वयं पुस्तकों को रचित किया। अतः पढ़ने की इच्छा तो मनुष्य के मन से ही होती है, अनिच्छा या अनिवार्य रूप से कोई नहीं पढ़ सकता।
यदि व्यक्ति अपनी मानसिक क्षमताओं को विकसित करने के लिये पढ़ना चाहता है तो उत्कृष्ट पुस्तकों के चयन व सही विषयों की उपयोगिता को समझकर ही अध्ययन प्रारम्भ करना चाहिये। पढ़ने का विशेष उद्देश्य निर्धारित करने से ही उत्कृष्ट विचार एवं शब्द भण्डार में वृद्धि होती है और उसका प्रतिफल गुणकारी सिद्ध होता है।
वर्तमान परिवेश के व्यस्तम, जीवन शैली में प्रत्येक व्यक्ति को नियमित स्वाध्याय के द्वारा अपनी मन की शक्तियों को सुद्धढ़, सशक्त व विकसित करना चाहिये और अपने रूचिकर कार्यक्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त करके परिवार और समाज के लिये उन्नतिशील व विकसित राहों का निर्माण करें।
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