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मानसिक शक्तियों का विकास क्यों और कैसे
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मनुष्य जीवन की प्राप्ति सृष्टि की एक अनुपम एवं सर्वश्रेष्ठ कृति है और इस मानव शरीर में शिव का सर्वाधिक विलक्षण, महान शक्तिशाली ऊर्जा तन्त्र ‘मस्तिष्क’ अवस्थित है। इस अतिविशिष्ट तन्त्र की शक्ति व क्षमताएँ असीमित है, जिसके बल पर मानसिक शक्तियों का उत्कृष्ट सृजन निरन्तर सृजित होता है। ‘मानसिक शक्ति’ शरीर का वह अनुलनीय शक्तिपुँज है, जो प्रतिपल परिदर्शित होता है, हमारे कर्म और चमत्कारों के सृजन के रूप में, और परमपिता परमेश्वर एवं प्रकृति को आत्मसात करने की चेतना देता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जीवन असाधारण रूप से उलझ गया है, चारों ओर बिखराव और जटिलताओं के कारण मानसिक शक्तियों का ह्ास हो रहा है। अतः आवश्यकता है कि मनुष्य अपने इर्द-गिर्द घटित हो रही समस्त क्रियाओं और घटनाओं के परिणाम को निष्पक्ष, निर्दोष एवं सजह दृष्टि से देखें। कभी ऐसा भी हो सकता है कि जटिल स्थितियों में किया गया संघर्ष, हमें उत्तम मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा दे जाये। वस्तुतः हमें स्वंय की मानसिक शक्तियों दिमागी ताकत को सुदृढ़ एवं आध्यात्मिक आभा से आभाषित कर परिपक्व करना होगा ताकि शांत व सहज मन से इस अप्रतिम जीवन में, सकारात्मक विचार, अध्ययन, उन्नत अभिवृत्ति, ध्यान प्रक्रिया, कर्मयाग, ज्ञानयोग, चिंतन एवं मनन के माध्यम से नूतन शक्तियों का संचार अविरल होता रहे। मूलतः मस्तिष्क का उत्कृष्ट, परिष्कृत व विकसित अस्तित्व हमारे व्यक्तित्व को सफलता, सकारात्मक सोच व प्रसन्नता का उपहारदेकर सुखी, सहज और प्रभावशाली बना सकता है।
‘मस्तिष्क’ मानव शरीर की शक्ति प्रवाहक अद्भुत कुंँजी है, यह ‘मन’ की अनन्त शक्ति का स्रोत है। आवश्यकता है, इस विशाल-चमत्कृत शक्ति के भण्डार के द्वार पर लटके हुये ताले को खोलने की। जिसके परिणाम स्वरूप ‘ज्ञान चक्षु’ खुलते हैं, तन और मन क्षण भर में, आलौकिक शक्तिपॅुंज से प्रकाशमय हो जाता है। इसके साथ ही, मानसिक शक्तियों को श्रेष्ठ, विकसित दिशा प्रदान करने में, सकारात्मक विश्वास और सफलतादायक विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जबकि उसके विपरीत नकारात्मक विश्वास से निराशा एवं हतोत्साहजनक विचार ही उत्पन्न होते हैं।
स्वाध्याय और ज्ञानवर्द्धन की उत्कंठा हमारे मन में नवीन आयामों, विचारों एवं लक्ष्यों का सृजन करती है। धार्मिक, साहित्यिक, ज्ञानपयोगी, सुन्दर साहित्य के अध्ययन की पुनरावृत्ति मानव मन में दृढ़ता, संकल्पशक्ति और परस्पर सम्बन्धों में सरलता एवं प्रगाढ़ता लाती है। अस्तु, मनुष्य को अपने मस्तिष्क के विकास हेतु अपनी कल्पनाओं का सृजन करना होगा, क्योंकि कल्पना में असीमित शक्ति का आगार है, इस आंकाक्षा को पहचानकर, अनुभव करके ही, कल्पनाओं व महत्वकांक्षाओं को साकार किया जा सकता है। वास्तव में, जीवन की प्रत्येक सफलता का अंकुरण इसी कल्पना के धरातल पर होता है, बशर्ते, इसे दृढ़ निश्चय व हृदय से आत्मसात किया जाए। महान लेखक ‘सेनेसा’ ने लिखा भी है-‘‘महान वही व्यक्ति बनता है जो सर्वाधिक अजेय निश्चय के साथ श्रेष्ठ लक्ष्यों का चुनाव करता है।“
अंततः, ‘‘स्वस्थ मस्तिष्क केवल स्वस्थ शरीर का ही अनुपम निवासी रहे।’’ अर्थात् प्रसन्नता, सफलता एवं समस्त सुखों का सजस्र स्रोत, ‘स्वस्थ मानसिक शक्तियॉं है। इन्हें सॅंवारने, निखारने व उत्कृष्ट रूप से विकसित करने हेतु, सप्त कीर्ति स्तम्भ निम्नांकित हैः- 1. सकारात्मक दृष्टिकोण, 2. उत्तम पोषण, 3. स्वस्थ आदमें, 4. उचित शारीरिक व्यायाम, 5. सन्तुलित वार्तालाप, 6. स्नेहिल-सहृदयी सम्बन्ध, 6. योगिक क्रियाएॅं जैसे, ज्ञानमुद्रा, ध्यान मुद्रा व ‘ओंकार’ का स्मरणादि। इसके साथ ही, मस्तिष्कीय कार्यकुशलता में, क्षमताओं व स्वास्थ्य में वांछित उत्तमता और ऊर्जा शक्ति प्रदाय करने के लिये उचित एवं पर्याप्त विश्राम की भी महती आवश्यकता होती है।
निष्कर्षतः, मस्तिष्क की शक्तियाँ अतुलित व दिव्य हैं। आज प्रमुख आवश्यकता, अपनी मानसिक क्षमताओं को पहचानने, समझने, उन्नत करने व उनका समुचित उपयोग करने की है। इस तरह मनुष्य अपने ‘मन’ की विषम भावनाओं जैसे; काम, क्रोध, लोभ-मोह, ईष्या-द्वेष, और व्यसन-आलस्य को त्यागकर ही वास्तविक सुख की अनुभूति के साथ ही, सफल व्यक्तित्व एवं उत्तम चरित्र का स्वामी बनता है तथा अपनी समस्त दुर्गम राहें सुगम व सहज बना लेता है। फलस्वरूप जीवन आनन्दमय, शांतिमय, ज्योतिर्मय स्वरूप दिव्यता के आलोक से ओत-प्रोत हो जाता है और ‘मन’ समस्त विक्षेत्रों से हटकर यर्थाथता को धारण करता है। इसलिये ‘मानसिक शक्तियों का सदैव सही प्रतिनिधित्व करें, उसमें अभिनव विकास, शास्त्रों उर्जा-उत्साह का निरन्तर प्रवाह बनाये रखें ताकि अंर्तमन में अदम्य, अक्षुण्ण, अद्भुत, उमंग व उत्साह की धारा अविरल प्रवल होती रहे।
अतएव, ज्ञान की चरम-सीमा से ही, मानव जीवन से उठकर, शिखर पर पहुँचने के स्वप्न को साकार रूप देता है। सफलता की सर्वोच्च उड़ान भरने की उत्कंठा उसे निरन्तर श्रेष्ठ मार्ग की ओर अग्रेसित करता है। फलस्वरूप, ऐसे उन्नत भावों की अभिव्यक्ति ही, हमारी मानसिक शक्तियों को विकसित करती है और जीवन को अतुलित आनन्द एवं पूर्णता की अभिव्यक्ति देती है।
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